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कैसा हो एक युवा का सपना:- "तरुण के स्वप्न" के बहाने से...

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अमर स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस जेल में बिताये अपने दिनों को याद करते हुए लिखते हैं-" जन्मभूमि से दूर जेल की कोठरी में महीने पर महीने काट रहा था, उस समय बार-बार मेरे मन में यह प्रश्न उठता था- " किसके लिए, किस उद्दीपन से उद्दीप्त हो कारावास के बोझ से न दबकर हम और भी शक्तिमान हो रहे हैं?" इस प्रश्न का आत्मा जो उत्तर देती, वह यह था- " भारत का एक Mission है, एक गौरवमय भविष्य है, उस भावी भारत के उत्तराधिकारी हमी हैं। नवीन भारत के इतिहास की रचना हमी ने की है और करेंगे। इसी विश्वास के बल पर हम सब दुःख,यातना सहते हैं, वास्तविकता को आदर्श के आघात से चूर-चूर कर डालते हैं। इसी अटल अचल विश्वास के कारण ही भारतीय युवकों की शक्ति मृत्युंजयी है। ...जो व्यक्ति किसी महान आदर्श को निस्वार्थ भाव से चाहने के कारण दुःख और यंत्रणा पाता है, उसके लिए वह दुःख और यंत्रणा अर्थहीन-बेमतलब नहीं होती। उसके लिए तो दुःख आनन्द के रूप में रूपांतरित होता है। वही आनन्द अमृत की तरह उसकी रग-रग में शक्ति का संचार करता है। वही जीवन का वास्तविक अर्थ समझ सकता है, आदर्श के चरणों में सर्वस्व

अब्राहम लिंकन की जीवनी:-महान लोग अपनी असफलताओं से ताकत लेते हैं..साधरण लोग निराशा।

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अब्राहम लिंकन जब 8 वर्ष के थे, तो उन्होंने देखा कि उनके निवास स्थान(केंटुकी) में गुलामों को कोड़े से पीटा जा रहा है। वे भागकर अपनी माँ के पास गये और पूछा कि -"माँ'! क्या गुलामी कोई अच्छी बात है?" माँ ने कहा, "नहीं बेटा! गुलामी कोई अच्छी बात नहीं है।" अब्राहम ने फिर पूछा, " क्या केंटुकी के लोगों को गुलामी से मुक्त कराने के लिए कोई महापुरुष जन्म लेगा।" माँ ने कहा, "हो सकता है।" अब्राहम ने कहा, "केंटुकी निवासियों को गुलामी से मुक्त कराने के लिए ईश्वर अवश्य किसी को भेजेगा,अगर नहीं भेजेगा तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि इस संसार से गुलामी के इस कलंक को सदा के लिए मिटा दूंगा।'  मात्र 8 वर्ष की उम्र में इतनी गहरी और मानवीय बात सोचने वाला छोटा सा बच्चा 52 वर्ष की उम्र में अमेरिका का 16 वां राष्ट्रपति बना,जिसे दुनिया में 'दास मुक्ति का मसीहा' नाम से जाना जाता है। अब्राहम लिंकन कहते थे कि :- " मैं कभी दास बनना पसन्द नहीं करता। अतः मैं किसी का स्वामी भी नहीं बनना चाहता। इसके विरुद्ध जो भी व्यवस्था होगी, वह जनतंत्र नहीं होगी

सत्याग्रह की भूमि पर परम् ज्ञान की प्राप्ति....

टी.टी.ई महोदय अपनी बात यात्री को बहुत अच्छे से समझा रहे थे। उनका साफ-साफ कहना था कि अगर नियम के मुताबिक वे टिकट काटकर देंगे तो यात्री को अधिक पैसा देना होगा। ज़ाहिर सी बात है यात्री भी इस वित्तीय बोझ का आकलन कर रहा था। उसे टिकट खरीदने की तुलना में टीटीई साहब की बात मान लेने में ज्यादा फायदा था।यात्री अकेला नहीं था, साथ में उसकी पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चे भी थे। उनमें एक छोटी बच्ची भी थी,जो बड़े ध्यान से इस पूरे प्रकरण को देख रही थी। मेरी नींद खुल चुकी थी। मैं अपने गंतव्य स्टेशन को पहुँचने वाला था। साइड अपर बर्थ की अपनी सीट से मैं इस पूरे प्रकरण को मैं बहुत ध्यान से सुन रहा था।  यात्री:- अरे सर! फेमिली वाला आदमी हूँ। उसी में देख लीजिए। थोड़ा-बहुत कुछ और गुंजाइश कीजिए न! कम से कम दूगो सीट तो हमको चहिए ही। आप ज्यादा डिमांड कर रहे हैं।  टी.टी.ई:- अरे हम 2002 से इसी ट्रेन में ड्यूटी दे रहे हैं। हमारा हिसाब एकदम किफायती और सवारी के हक में होता है। आपको बता ही दिए कि...पर हेड .....रूपया...से कम नहीं हो पायेगा। आखिर हमारा भी एक सिस्टम है...रेट है। यात्री:- अरे सर! 4 घण्टे की तो बात है। फेमिली नह

एक ड्राइवर की डायरी: ... मैं अपने जीने की ज़िद की लहरों से वक्त के किनारे को धक्का दिये जा रहा हूँ।

विजय राणा जी पिछले अट्ठाइस वर्षों से दिल्ली की सड़कों पर गाडियाँ दौड़ाने का काम करते आ रहे हैं। वे मुस्कुरा कर कहते हैं कि धरती पर ट्रेन और आकाश में प्लेन उड़ाने के अलावा उनको सभी गाड़ियों को ठीक से हांक लेने का हुनर आता है। दिल्ली में लंबे समय से गाड़ी चलाते-चलाते उनको यहाँ की हर गली,ट्रैफिक सिग्नल और सड़क के हर मोड़ बहुत जाने-पहचाने से लगते हैं। वे इस बात को बखूबी समझते हैं कि सड़क के इन मोड़ों में, जाम हुए सड़कों पर रुकी गाड़ियों के काफ़िलों में, ट्रैफिक सिग्नल की लाल और हरी होती बत्तियों में उनका जीवन भी वर्षों से मुड़ता रहा है, कभी रुकता तो कभी सरपट भागता रहा है। इन बत्तियों की तरह बिना थके उनकी जिंदगी भी दुख-सुख के लाल-हरे रंगों की रौशनी लिए वक्त की सड़क पर दौड़ती चली जा रही है।  इन दिनों वे UB.....R.कम्पनी की गाड़ी चला रहे हैं। बातचीत से वे बहुत समझदार और सुलझे हुए इंसान मालूम पड़ते हैं। विजय जी और मैंने दोनों ने मास्क ओढ़ रखा है। उनका चेहरा ठीक से दिखाई नहीं दे रहा। हाँ, कद-काठी से विजय जी साधारण मालूम पड़ते हैं। ट्रैफिक सिग्नल की प्रतीक्षा में एक जगह गाड़ी रुकती है। विजय जी पानी पीने के लिए मास्क

'क्या रिश्ते भी जायज और नाजायज होते हैं

मैं अक्सर सोचता हूँ कि क्या रिश्तों को भी जायज और नाजायज के खाँचे में रखकर देखना ठीक होगा? जब दो व्यक्ति एक दूसरे के साथ जुड़ते हैं तो इसका कारण एक दूसरे के प्रति प्रेम, आकर्षक, आत्मीयता या किसी अन्य तरह के सुख की खोज का होती है।यह सम्बन्ध किस रूप में विकसित होगा,यह महज उन दो लोगों की आपसी सहमति पर आधारित होना चाहिए। इसमें कोई किसी का मालिक या कोई किसी का गुलाम नहीं होता। दोनों एक-दूसरे के प्रति कितने कमिटेड और कितने लॉयल हैं यह उनके चयन और नेचर की स्वाभाविकता का मामला है न कि कोई बाध्यता या जबरन ओढ़ी हुई नैतिकता। यदि दोनों में से कोई भी किसी तीसरे को लेकर आकर्षण या झुकाव महसूस करता है तो यह एक स्वाभाविक बात है। मैं समझता हूँ कि किसी के प्रति अपने भीतर के अदम्य आकर्षण और झुकाव को नैतिकता के आवरण में दबा लेना एक अस्वाभाविक और अवैध घटना होगी। सिर्फ विवाह के नाम पर जबरन एक-दूसरे से बंधे रहना निश्चित ही एक अवैध घटना है। मेरी समझ से हर वह प्रेम या विवाह का रिश्ता जिसमें प्रेम, आदर, एक-दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान, बराबरी का भाव जैसी चीजें न हों तो वह स्वतः अवैध बन जाता है। अपने आस-पास के वैव