कैसा हो एक युवा का सपना:- "तरुण के स्वप्न" के बहाने से...

अमर स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस जेल में बिताये अपने दिनों को याद करते हुए लिखते हैं-" जन्मभूमि से दूर जेल की कोठरी में महीने पर महीने काट रहा था, उस समय बार-बार मेरे मन में यह प्रश्न उठता था- " किसके लिए, किस उद्दीपन से उद्दीप्त हो कारावास के बोझ से न दबकर हम और भी शक्तिमान हो रहे हैं?" इस प्रश्न का आत्मा जो उत्तर देती, वह यह था- " भारत का एक Mission है, एक गौरवमय भविष्य है, उस भावी भारत के उत्तराधिकारी हमी हैं। नवीन भारत के इतिहास की रचना हमी ने की है और करेंगे। इसी विश्वास के बल पर हम सब दुःख,यातना सहते हैं, वास्तविकता को आदर्श के आघात से चूर-चूर कर डालते हैं। इसी अटल अचल विश्वास के कारण ही भारतीय युवकों की शक्ति मृत्युंजयी है। ...जो व्यक्ति किसी महान आदर्श को निस्वार्थ भाव से चाहने के कारण दुःख और यंत्रणा पाता है, उसके लिए वह दुःख और यंत्रणा अर्थहीन-बेमतलब नहीं होती। उसके लिए तो दुःख आनन्द के रूप में रूपांतरित होता है। वही आनन्द अमृत की तरह उसकी रग-रग में शक्ति का संचार करता है। वही जीवन का वास्तविक अर्थ समझ सकता है, आदर्श के चरणों में सर्वस्व समर्पण कर सकता है, वही जीवन रस का आनन्द पा सकता है।"

'तरुण के स्वप्न' एक महत्वपूर्ण और पठनीय पुस्तक है। इस किताब में सुभाष चन्द्र बोस के राजनीतिक जीवन के प्रारंभिक चरण के उद्बोधन और जेल से लिखे गये उनके पत्रों का संकलन है। इस किताब को पढ़ने से सुभाष बाबू के युवकालीन सामाजिक व राष्ट्रीय सरोकारों का परिचय मिलत है। इनके पत्रों और लेखों से 'तरुण होने का सही अर्थ'  प्रकट होता है। 

स्वतंत्रता आंदोलन में देश की जनता को अपने पराक्रम, तेजस्विता, विचार और दृढ़ता से जिन महात्माओं ने सबसे अधिक प्रभावित और प्रेरित किया उनमें सुभाष बाबू का नाम अग्रिम लोगों में से एक है। उन्होंने सचमुच अपना खून देकर सकल भारतीय जनता को आजादी की सौगात दी। 

'तरुण के स्वप्न' किताब को पढ़ते हुए सुभाष बाबू की मौलिकता,तरुण होने का अर्थ, उनके विशद अध्ययन, राष्ट्र के प्रति अगाध श्रद्धा, बंगाल के प्रति असीम अनुराग, शिक्षा की मौलिक परिकल्पना, गाँधी के प्रति उनके प्रेम, देशबंधु चितरंजन दास के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा आदि अन्यान्य विषयों का पता चलता है। 

सुभाष बाबू एक अत्यंत मौलिक, ऊर्जावान और क्रांतिकारी तेवर के व्यक्ति थे। उनके मन में आजादी का स्वप्न इतनी गहराई से बैठा था कि उसे पाने के लिए वे कोई भी कीमत देने को तैयार थे। जेल से लिखे उनके पत्रों को पढ़कर यह ज्ञात होता है कि उद्देश्य यदि महान हो तो उसे पाने के मार्ग में आनेवाले कष्ट में भी आनन्द मिल जाता है। धुन के मतवाले तो दीवाने हुआ करते हैं, इस बात का पता इस किताब के कुछ पन्नो पर तैरते शब्द दे जाते हैं। सुभाष बाबू दीवाने थे, आजादी को उन्होंने दीवानगी की सारी सीमाओं को तोड़कर चाहा। सोते-जागते, उठते-बैठते हर साँस में आजादी का स्वप्न..ऐसे थे हमारे सुभाष बाबू।   महान उद्देश्य के लिए महान धैर्य, महान विश्वास, महान त्याग और महान बलिदान की आवश्यकता होती है। सुभाष बाबू इस बात के जीते जागते प्रमाण हैं। आइये इस किताब के बहाने सुभाष बाबू के विचार और उनके कर्मों को फिर से याद करें ।

जो लोग महात्मा गाँधी और सुभाष बाबू को दो खेमे में फिट करके आश्वस्त हो जाते हैं, उन्हें यह किताब पढ़नी चाहिए। यह बात ठीक है कि दोनों के रास्ते अलग थे, साधन के इस्तेमाल को लेकर दोनों की राय अलग थी लेकिन बावजूद इसके सुभाष बाबू गाँधी जी को आजादी की प्रेरणा मानते थे। हम सब जानते हैं कि महात्मा गाँधी को 'राष्ट्रपिता' का संबोधन भी सुभाष बाबू ने ही दिया था। यह बात और है कि आजादी हासिल करने के गाँधी के रस्ते से वे शुरू से ही असहमत थे। सुभाष बाबू का यह विश्वास था कि भारत को आजादी अहिंसा और शांति से नहीं बल्कि सशस्त्र क्रांति और संघर्ष के रास्ते पर ही चलकर मिलेगी।  इन सब बातों के बावजूद सुभाष बाबू के मन में गाँधी जी के प्रति जो श्रद्धा थी, यह बात सुभाष बाबू के महान व्यक्तित्व को रेखांकित करती है।
6 जुलाई 1944 के , आजाद हिंद रेडियो से प्रसारित, अपने भाषण के अंत में सुभाष बाबू ने कहा था:" हमारे राष्ट्रपिता! भारत की आज़ादी को इस पवित्र लड़ाई में हम आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं की कामना करते हैं। यह बात ग़ौरतलब है कि साधनों और उपायों के मतभेद के बावजूद सुभाष बाबू आज़ादी के मुख्य प्रेरणास्रोत के रूप में अंतिम सांस तक महात्मा गाँधी को ही देखते रहे। 

सुभाष बाबू के जेल से लिखे गये पत्र हमारे अमूल्य धरोहर हैं। इन पत्रों को पढ़ते हुए भीतर ऊर्जा की बाढ़ सी आ जाती है। ये पत्र हमारी चेतना को जोर से झकझोरते हैं और याद दिलाते हैं कि हम अपने जीवन को कैसे महान उद्देश्य के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
उनका यह विश्वास था कि प्रेम किये बिना प्रतिदान में जैसे प्रेम नहीं मिलता, वैसे ही स्वयं आदमी बने बिना आदमी को 'आदमी' नहीं बनाया जा सकता। 
वे कहते थे कि सिर्फ कर्म करते रहने से मनुष्य का आत्मविकास सम्भव नहीं हो सकता। वे कर्म के साथ लिखने-पढ़ने और ध्यान-धारण को महत्वपूर्ण मानते थे। ध्यान की महत्ता को रेखांकित करते हुए वे कहते हैं कि-" आंतरिक संयम प्रतिष्ठा के लिए ध्यान बहुत आवश्यक है। भीतर के संयम के बिना बाहर का संयम स्थायी नहीं होता। व्यायाम से जैसे शरीर की उन्नति होती है, उसी प्रकार साधना से सदवृत्तियाँ जागृत होती हैं। साधना के दो उद्देश्य हैं- (1) भीतरी शत्रु- भय, काम, स्वार्थ आदि पर विजय पाना। (2)प्रेम, शक्ति, बुद्धि,त्याग आदि गुणों का विकास करना। "

उनका गहरा विश्वास इस बात में था कि मनुष्य जिस विषय का अधिक ध्यान करता है, वैसा ही हो जाता है। जो अपने को दुर्बल और पापी समझता है, वह दुर्बल हो जाता है। जो हमेशा अपने को पवित्र और शक्तिशाली अनुभव करता है, वह पवित्र और शक्तिशाली हो जाता है। इसलिए वे अपने लिखे पत्रों में ध्यान,प्रेम और पढ़ते-लिखते रहने को जीवन निर्माण का सबसे ताकतवर माध्यम मानते हैं।
वे युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए व्यायाम, ध्यान और अध्ययन को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं।

हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था कैसी हो? इस विषय पर सुभाष बाबू के वैज्ञानिक विचारों को पढ़कर मैं बहुत प्रभावित हुआ। वे शिक्षा व्यवस्था को प्रैक्टिकल रूप में देखना चाहते थे।  वे कहते थे कि -" Manual training के बिना शिक्षा की जड़ में मट्ठा पड़ जाता है। अपने हाथ से कोई चीज बनाने में जो आनन्द मिलता है, वैसा आनन्द पृथ्वी पर कम ही है। सर्जन करने में गम्भीर आनन्द निहित है। इसी joy of creation का , बच्चे अपने हाथ से जब कोई चीज तैयार करते हैं, तब अनुभव करते हैं। बगीचे में पेड़-पौधे लगाकर या मिट्टी के खिलौने बनाकर यानी किसी भी नई चीज को बनाकर बच्चे परम प्रसन्न होते हैं। बच्चे छोटी उम्र में इस तरह का आनन्द प्राप्त कर सकें ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। इसी प्रकार उनकी Originality या व्यक्तित्व का विकास होगा। वे लिखने-पढ़ने से न डरकर उसका आनंद उठाना सीखेंगे। " 
विलायत का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि विलायत के अधिकांश स्कूलों में बच्चे बागवानी,व्यायाम, गाना-बजाना सीखते हैं, Route march करते हैं। जत्थे बनाकर सड़कों पर घूमते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में बच्चों को यह बिल्कुल नहीं लगना चाहिए कि वे पढ़ रहे हैं , बल्कि ये लगे कि वे खेल रहे हैं या कहानी सुन रहे हैं। 

प्रथमावस्था में टेक्स्टबुक की बिल्कुल जरूरत नहीं है।पेड़,पत्ते, फूलों के बारे में उन्हें जो कुछ बताया जाये, वह पेड़, पौधे, फूल आदि सामने रखकर। आकाश,तारे आदि के बारे में जब शिक्षा दी जाये तब मुक्त आकाश के नीचे ले जाकर। जिस चीज की शिक्षा दी जाये, वह सब इंद्रियों के सामने उपस्थित हो, यही सर्वोत्तम विधि है।

सुभाष बाबू का जीवन और उनके विचार बार-बार पाठक मन को उद्वेलित और आंदोलित करते हैं। उनका मानना था कि भीड़ की ओर मुड़ना उचित नहीं बल्कि जिसकी जैसी शक्ति हो, जिसकी जिस तरफ अभिरुचि हो उसे अपने लिए वैसा ही कार्य-क्षेत्र चुन लेना चाहिए। जिसकी जैसी जन्म-जात या भगवत दत्त क्षमता है, उसे उसी को विकसित करना चाहिए और उसे ही देश माता के चरणों पर अर्पण कर देना चाहिए। 

इतिहास गवाह है कि नायक अटूट विश्वास और अदम्य सकारात्मक शक्ति के अक्षय भंडार होते हैं। उनकी यही ताकत सामान्य जन को अपनी ओर आकर्षित करती है। नायक कभी भी रक्त मांस के विरुद्ध संग्राम नहीं करते बल्कि मूलतः वे पृथ्वी के अंधकार के विरुद्ध संघर्ष करते हैं। 
यही कारण है कि तमाम कठिन संघर्षों को पारकर नायक अपना रास्ता खोज लेते हैं। उनका शरीर नष्ट हो जाता है लेकिन उनके अटल विश्वास और दुर्जय संकल्प शक्ति की जीत होती है।
सुभास बाबू कहते थे:-  हम सृष्टि करने आये हैं। अनन्त आशा, असीम उत्साह, अपरिमेय तेज और अदम्य साहस लेकर हम आये हैं, तभी तो हमारा जीवन श्रोत कभी रुँध नहीं सकता। अविश्वास और निराशा के पर्वत सामने अड़ जाएँ, सम्पूर्ण मानव जाति की शक्ति प्रतिकूल होकर आक्रमण करे,तब भी हमारी आनंदमयी गति चिरकाल तक अक्षुण्ण रहेगी।

सुभाष बाबू की इसी शक्ति ने उन्हें जेल के यातनापूर्ण जीवन में भी बुलंद रखा। ऐसा नहीं था कि वे जेल के अपने जीवन में बहुत आनंद महसूस करते थे। लेकिन जेल के जीवन को उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति के दिव्य प्रताप से अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। अपने पत्रों में वे जेल जीवन की मानसिक यातना और कैदियों की मनःस्थिति पर भी  लिखते हैं लेकिन कुल मिलाकर उनका विचार था कि
Suffering में सिर्फ कष्ट ही नहीं, आनन्द भी है। किंतु जो इस आनन्द को महसूस नहीं कर सकता,उसके लिए कष्ट ही कष्ट है। वह दुःख और कष्ट से अभिभूत हो जाता है। किंतु जिसने दुःख और कष्ट में भी एक अनिर्वचनीय आनन्द का आस्वाद पाया है, उसके लिए Suffering गौरव की चीज है। क्योंकि जिस उद्देश्य के लिए वह पीड़ित हो रहा है, वह उद्देश्य बहुत ऊँचा है, महान है। 
सुभाष बाबू का उद्देश्य बहुत ऊँचा था। माँ भारती की आजादी के लिए सहे गये कष्ट उनके लिए गौरव का विषय था। इसलिए वे पीड़ा में भी आनन्द देखते थे। 

अपने पत्र  में सुभाष बाबू ने अपने राजनैतिक गुरु  देशबंधु चितरंजन दास का जो चित्रण किया है, वह अनिर्वचनीय है।उसे पढ़कर किसी महान व्यक्ति द्वारा अपने महान गुरु के बारे में अभिव्यक्त भावों की दुनिया का पता चलता है। 

सुभाष बाबू देशबंधु के बारे में लिखते हैं-" वे इतने बड़े थे और मैं इतना क्षुद्र हूँ कि मुझे भय होता है कि उनकी प्रतिभा कितनी सर्वतोमुखी, हृदय कितना उदार, चरित्र कितना महान था, उसे आज भी हृदयंगम नहीं कर सका हूँ। ऐसी हालत में क्षुद्र हृदय,क्षीण विचार, शक्ति और दीन भाषा की सहायता से उन प्रातः स्मरणीय के सम्बंध में कुछ लिखना धृष्टता होगी।" 

महान लोगों की महानता का पता बड़ी-बड़ी बातों से ही नहीं, छोटी-छोटी बातों से भी लगता है। देशबंधु चितरंजन दास के गुणों और उनके व्यक्तित्व की उदारता का जितना सच्चा और हृदयग्राही चित्रण सुभाष बाबू ने अपने पत्रों में किया है, उसे पढ़कर मेरा मन इन दोनों महापुरूषों के प्रति पहले से अर्जित श्रद्धा में एक पाठकीय अनुभव की प्राणवान दुनिया के साथ जुड़कर और भी घनीभूत हो जाता है। मैं आश्चर्यचकित हो उठता हूँ कि कैसे किसी व्यक्ति के बड़े से बड़े अवगुण को जानकर भी उससे प्रेम करने की ताकत देशबंधु के पास थी। वे बहुत बार जान बूझकर मूर्ख बन जाते, और सामनेवाले के लिए वे सबकुछ करते जो वे कर सकते थे। सुभाष बाबू ने देशबंधु के व्यक्तित्व के हर एक पहलू पर इतना खूबसूरत लिखा है कि मन विह्वल हो उठता है, उस महान व्यक्ति के प्रति।

यह किताब न तो पूरी जीवनी है न यह सुभाष बाबू के बारे में जानने के लिए इतिहास की कोई मुकम्मल किताब। लेकिन इस पुस्तक में सुभाष बाबू के लेखों और पत्रों को पढ़कर उनको जानने समझने की दुनिया में आप कदम बढ़ा सकते हैं। आपको उनका हर एक पत्र विचारों की एक नई दुनिया की तरफ ले जायेगा।  तो देर किस बात की...

हाँ, खास बात यह है कि इस किताब को  पढ़ने के बाद सुभाष बाबू के बारे में इतिहास के हवाले से और जान लेने , सुन लेने की आपकी प्यास बढ़ती जाती है लेकिन सुभाष बाबू आपके भीतर किसी 'तरुण के स्वप्न' की तरह एक महान आदर्श के रूप में गहरे उतरते चले जाते हैं। कुछ अच्छा पढ़ना चाहते हैं तो यह किताब जरूर पढ़ें। 
Amazon पर यह किताब उपलब्ध है। 

        आपका
       प्रशान्त रमण रवि
       असिस्टेंट प्रोफेसर, गवर्नमेंट कॉलेज लिल्ह कोठी, चम्बा(हिमाचल प्रदेश)
Email :- raviraman0076@gmail.com


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