अब्राहम लिंकन की जीवनी:-महान लोग अपनी असफलताओं से ताकत लेते हैं..साधरण लोग निराशा।

अब्राहम लिंकन जब 8 वर्ष के थे, तो उन्होंने देखा कि उनके निवास स्थान(केंटुकी) में गुलामों को कोड़े से पीटा जा रहा है। वे भागकर अपनी माँ के पास गये और पूछा कि -"माँ'! क्या गुलामी कोई अच्छी बात है?" माँ ने कहा, "नहीं बेटा! गुलामी कोई अच्छी बात नहीं है।"
अब्राहम ने फिर पूछा, " क्या केंटुकी के लोगों को गुलामी से मुक्त कराने के लिए कोई महापुरुष जन्म लेगा।" माँ ने कहा, "हो सकता है।" अब्राहम ने कहा, "केंटुकी निवासियों को गुलामी से मुक्त कराने के लिए ईश्वर अवश्य किसी को भेजेगा,अगर नहीं भेजेगा तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि इस संसार से गुलामी के इस कलंक को सदा के लिए मिटा दूंगा।' 

मात्र 8 वर्ष की उम्र में इतनी गहरी और मानवीय बात सोचने वाला छोटा सा बच्चा 52 वर्ष की उम्र में अमेरिका का 16 वां राष्ट्रपति बना,जिसे दुनिया में 'दास मुक्ति का मसीहा' नाम से जाना जाता है। अब्राहम लिंकन कहते थे कि :- " मैं कभी दास बनना पसन्द नहीं करता। अतः मैं किसी का स्वामी भी नहीं बनना चाहता। इसके विरुद्ध जो भी व्यवस्था होगी, वह जनतंत्र नहीं होगी। 

अपने ही देश के एक हत्यारे की गोली से अपनी जिंदगी गंवाने वाले लिंकन के अंतिम संस्कार के बाद उनकी समाधि पर दूसरी बार राष्ट्रपति का पद ग्रहण करते समय उनके द्वारा दिया गया भाषण पढ़ा गया। उस भाषण के प्रमुख शब्द थे, 'दुर्भाव किसी के प्रति नहीं, सद्भाव सबके प्रति, भगवान द्वारा दिखाए गए सत्य मार्ग पर दृढ़ता के साथ ।'

अब्राहम लिंकन की तस्वीर को बचपन में सबसे पहले स्कूल की किसी किताब के पन्ने पर देखा था तो उनकी विशालकाय काया और लंबे छरहरे बदन को देखकर यहीं खयाल आया था कि तस्वीर बनानेवाले ने इसलिए इतनी बड़ी तस्वीर बना दी होगी क्योंकि यह आदमी बहुत ताकतवर देश का राष्ट्रपति था। 
लेकिन उनकी जीवनी पढ़कर लगा कि यह इंसान मानवता के इतिहास में इंसानियत के पक्ष में खड़ा रहनेवाला सबसे ताकतवर और खूबसूरत आवाज़ों में से एक है। यह आवाज़ इंसानियत के पक्ष में खड़े रहनेवाले हर इंसान की एक बड़ी थाती भी है, जहाँ से उसे हिम्मत और प्रेरणा मिलती है।

अब्राहम लिंकन की जीवनी पढ़ते हुए कई बार मेरी आँखें नम हो गईं। अब्राहम की जिंदगी यह बताती है कि महान बनना दरअसल एक लंबी और संघर्षपूर्ण यात्रा का नतीज़ा होता है। महान बनने की पूरी प्रक्रिया ही इस बात पर टिकी होती है कि आप विपरीत से विपरीत हालात में भी कैसे अपने मूल्यों पर टिके रहते हैं, कैसे आप टूटते हुए भी ऐसा सपना देख रहे होते हैं जिस सपने में आप मानवता के हित की आवाज़ बुलंद करने के मौके खोज रहे होते हैं, आप कैसे तब भी अपने आप को बहुत स्थिर रखते हैं जब कुछ भी आपके पक्ष में नहीं होता, आपके इरादे चट्टानी और विश्वास आसमान की छाती पर जमे उस ध्रुवतारे की तरह होते हैं जो परिस्थितियों के तूफ़ान में कभी टूटते या डूबते नहीं। 
मैंने यह भी महसूस किया कि महान लोगों के पास महानतम धैर्य होता है,आकाश जैसी विस्तृत उम्मीदें होती हैं,समुद्र जैसी अथाह गहराई होती है।पानी जैसी विनम्रता होती है और पानी जैसा आत्मबल भी। अब्राहम लिंकन भी ऐसे ही थे। 

बचपन में ही माँ का साया उनके सिर से उठ गया। पिता के साथ उनके सम्बंध बहुत सामान्य थे, आत्मीय नहीं रहे। सौतेली माँ के साथ लिंकन के रिश्ते अंत अंत तक बहुत आत्मीय और मधुर बने रहे। कहते हैं न कि 'माएँ' सब जानती हैं। लिंकन जब दूसरी बार राष्ट्रपति बने तब उनकी सौतेली माँ राष्ट्रपति बनने की खुशी से कम खुश, किसी अनहोनी के भय से ज्यादा चिंताकुल थीं। उनकी यह चिंता अकारण नहीं थी। वह सम्भवतः लिंकन पर मौत का साया बनकर टूटने वाले उस बेरंग और मनहूस घड़ी के आने की सूचना भीतर ही भीतर महसूस कर रही थीं। हुआ भी ऐसा ही...दास मुक्ति के मसीहा को दासत्व बनाये रखने के पक्षधर लोग कहाँ जीने देते!  इतिहास गवाह है कि महान लोगों की मौतें असमय और त्रासद होती हैं। लिंकन भी मारे गये!
लिंकन की जीवनी पढ़ना अपने आप में एक ताकत से भर जाना है। उनकी सफलता से ज्यादा उनकी असफलता के किस्से आपको लुभाते हैं। क्योंकि सफलता तो जग जाहिर होती है लेकिन असफलताएँ व्यक्ति के अपने आत्मसंसार की दुनिया का एक हिस्सा बनकर रह जाती हैं। इन असफलताओं पर चर्चा भी इसलिए होती है कि ये किसी महान व्यक्ति की असफलताएँ होती हैं। पर बड़ी बात यह होती है कि महान लोग अपनी असफलताओं से ताकत लेते हैं और साधारण लोग निराशा।

 मैं लिंकन की जिंदगी में असफलताओं की एक छोटी सूची प्रस्तुत करता हूँ फिर आगे की बात...
 ..लिंकन ने 10 वर्ष की उम्र में खेती का काम शुरू किया लेकिन वे असफल रहे। 
..20 वर्ष की उम्र में लकड़हारे के रूप में कुछ काम करना चाहा लेकिन बात नहीं बनी।
..कुह समय बाद व्यापार करने का काम आजमाया। वहाँ भी फेल हो गये।
..22 वर्ष की उम्र में पहले स्थानीय चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 
.. 24 वर्ष की उम्र में उनका पहला प्यार खत्म हो गया। वे जिस लड़की से बेपनाह मुहब्बत करते थे, उसकी मौत हो गई।
..प्यार टूटने के आघात से 27 वर्ष की उम्र में नर्वस ब्रेकडाउन के शिकार हुए और लोग उन्हें पागल समझने लगे।
..34 साल की उम्र में एक बार फिर चुनाव हार गये। 
..45 साल की उम्र में फिर चुनाव में हार हुई। 
.. 47 साल की उम्र में उपराष्ट्रपति बनने में असफल हो गये। 
..49 साल की उम्र में फिर सीनेट का चुनाव हार गये। 
..अंत में 52 की उम्र में अमेरिका के 16 वें राष्ट्रपति बने। 
   मैंने यहाँ अंत में उनकी असफलता की सूची में ही सफलता को जोड़ दिया है। इसका कारण यह है कि महान लोगों की सफलता की इन्हीं असफलताओं पर निरंतर चलते रहने, जोखिम उठाने और प्रयोग करते रहने की ज़िद का नतीजा होता है। 

एक गरीब किसान से लेकर राष्ट्रपति बनने तक का लिंकन का सफर बेहद दिलचस्प और शानदार रहा है। दिलचस्प इसलिए कि उनके लिए पद पाना महत्वपूर्ण नहीं था। वे उस पद को एक बड़े उद्देश्य की पूर्ति के माध्यम के रूप में देख रहे थे। कहते हैं कि उद्देश्य साफ और पवित्र हो तो ईश्वर साथ देते हैं। लिंकन जिस नाटकीय ढंग से रिपब्लिकन की तरफ से राष्ट्रपति के पद के उम्मीदवार घोषित हुए, यह नाटकीय घटना बताती है कि आस्तित्व नेक इरादों के पक्ष में खड़ा हो जाता है। 

लिंकन बहुत नेक और ईमानदार थे। जो किया ईमानदारी और मानवीय मूल्यों पर टिके रहकर किया। वकालत करते हुए उनके व्यवहार के कुछ प्रसंग मानवीय करुणा के बहुत मार्मिक रूप प्रस्तुत करते हैं। हमेशा सही केस के लिए लड़ाई लड़ना, वकालत जैसे पेशे में कभी झूठ नहीं बोलना, गरीब और कमजोर लोगों का केस लड़ते समय उनसे कोई पैसा नहीं लेना... केस जो सुलझाये जा सकते हैं उन्हें अदालत में आने से पहले ही दोनों पक्षों कोआपस में समझा-बुझाकर ठीक कर देना। ...अपने विरोधियों के  प्रति भी सद्भाव और प्रेम रखना। ..ऐसे थे लिंकन। 

कहते हैं कि किसी पुरुष की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है। लिंकन की सफलता के पीछे उनकी पत्नी मैरी लिंकन की बड़ी भूमिका थी। उन्होंने हमेशा लिंकन के भीतर राजनीतिक महत्वकांक्षा को जगाकर रखा और उनमें यह विश्वास भरती रहीं कि तुम क्या कर सकते हो!  एक समय ऐसा भी था जब लिंकन को एक बहुत बड़ी सरकारी नौकरी मिल रही थी। तब मैरी लिंकन ने इस बात की वकालत की थी कि हमें रिस्क लेना चाहिए। आप आसान रास्तों के लिए नहीं बने हैं। आपको अमेरिका को महान बनाना है। यह बात और है कि मैरी लिंकन व्हाइट हाउस में जाने की अपनी महत्वकांक्षा को लेकर बहुत बेचैन और विश्वस्त थीं। लिंकन से मिलने से पहले से वह कहती थीं कि मैं उसी के साथ विवाह करूँगी जो एक दिन अमेरिका का राष्ट्रपति बनेगा। लिंकन के राष्ट्रपति बनते ही उनका यह सपना भी सच हुआ। 
 यह बात और है कि विवाह के बाद दोनों के रिश्ते बहुत ख़राब हो गये। लिंकन सादगी पसंद आदमी थे तो मैरी को दिखावा पसन्द था। वह बहुत गुस्सैल और चिड़चिड़ी थी। गुस्से में एक दिन मैरी ने गर्म कॉफी का प्याला लिंकन के चेहरे पर दे मारा। वे तिलमिला गये लेकिन मैरी को कुछ नहीं बोला। 

लिंकन चुप रहकर मैरी की बात टाल देते, उसके गुस्से को अपने धैर्य के अथाह सागर में समेट लेते। कारण यह था कि इतनी सारी कमियों के बावजूद भी वह मैरी को बेपनाह मुहब्बत करते थे। 

मुहब्बत करना लिंकन की फितरत थी। वह अमेरिका और अमेरिका की जनता से भी बेपनाह मुहब्बत करते थे। उस मोहब्बत का परिणाम ही था कि अमेरिका से दास प्रथा को लिंकन ने पूरी तरह मिटा दिया। वे बार बार टूटे..टूटते रहे.....राष्ट्रपति बनने के बाद अपने बेटे की मौत से वे सबसे ज्यादा टूटे। लेकिन उन्हें उठना था। अमेरिका की जनता की उम्मीदों का भार उनके कंधे पर था। वे उसे जीते जी पूरा करने में लगे रहे। उन उम्मीदों को पूरा करने के लिए वे हर मुश्किलों से टकरा कर उठते रहे।

एक दिन थियेटर में नाटक देखने के दौरान उनके सिर में गोली मारी गई। फिर वे कभी नहीं उठ सके। सब उनके उठने के लिए दुआएँ करते रहे, प्रार्थनाएं भेजते रहे लेकिन वे नहीं उठ सके। लेकिन इतिहास और समय के पन्ने पर वे मानवता के सबसे ऊंचे स्वर के रूप में हमेशा उठे रहेंगे। इंसानियत के हक में उनकी आवाज़ उठी रह गई...,उस आवाज़ की धुन युगों-युगों तज गूँजती रहेगी। 

हिंदी पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक  'अब्राहम लिंकन- दास मुक्ति का मसीहा' एक पठनीय पुस्तक है। 175 पेज की इस पुस्तक में ऐसा बहुत कुछ है, जो हमें और छात्रों को पढ़ना चाहिए। 

सर्द मौसम है, गर्म चाय की प्याली लीजिए और उठा लीजिए इस किताब को पढ़ने के लिए। चाय की गर्माहट खत्म होती रहेगी लेकिन इस पुस्तक को पढ़ लेने के बाद लिंकन के प्रति आपके प्यार की गर्माहट ताउम्र बनी रहेगी। 

      प्रशान्त रमण रवि
      असिस्टेंट प्रोफेसर, गवर्नमेंट कॉलेज लिल्ह कोठी, चम्बा , हिमाचल प्रदेश
Email :- raviraman0076@gmail.com





Comments

  1. शानदार
    प्रशांत.....

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  2. शानदार
    प्रशांत.....

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  3. पढ़े तो जरूर थे,लेकिन इतना नहीं,मन मर्महीत भी और गौरवान्वित भि हुआ,अद्भुत लेख प्रशांत रमन रवि जी,

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  4. You have penned your thoughts beautifully.

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  11. बहुत ही अच्छी जीवनी है सर जी अब्राहम लिंकन की।👌👌👌👌👍👍👍

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