सत्याग्रह की भूमि पर परम् ज्ञान की प्राप्ति....
टी.टी.ई महोदय अपनी बात यात्री को बहुत अच्छे से समझा रहे थे। उनका साफ-साफ कहना था कि अगर नियम के मुताबिक वे टिकट काटकर देंगे तो यात्री को अधिक पैसा देना होगा। ज़ाहिर सी बात है यात्री भी इस वित्तीय बोझ का आकलन कर रहा था। उसे टिकट खरीदने की तुलना में टीटीई साहब की बात मान लेने में ज्यादा फायदा था।यात्री अकेला नहीं था, साथ में उसकी पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चे भी थे। उनमें एक छोटी बच्ची भी थी,जो बड़े ध्यान से इस पूरे प्रकरण को देख रही थी। मेरी नींद खुल चुकी थी। मैं अपने गंतव्य स्टेशन को पहुँचने वाला था। साइड अपर बर्थ की अपनी सीट से मैं इस पूरे प्रकरण को मैं बहुत ध्यान से सुन रहा था।
यात्री:- अरे सर! फेमिली वाला आदमी हूँ। उसी में देख लीजिए। थोड़ा-बहुत कुछ और गुंजाइश कीजिए न! कम से कम दूगो सीट तो हमको चहिए ही। आप ज्यादा डिमांड कर रहे हैं।
टी.टी.ई:- अरे हम 2002 से इसी ट्रेन में ड्यूटी दे रहे हैं। हमारा हिसाब एकदम किफायती और सवारी के हक में होता है। आपको बता ही दिए कि...पर हेड .....रूपया...से कम नहीं हो पायेगा। आखिर हमारा भी एक सिस्टम है...रेट है।
यात्री:- अरे सर! 4 घण्टे की तो बात है। फेमिली नहीं होती तो हम स्लेपर में चले जाते, A.C में कहाँ आते। ई त ठण्ड मुआ दिया है तो घुस गये इधर। सोचे कि A.C में हीटर चलता है तो ठीक से सफर कट जायेगा।
कुछ कीजिए न सर...एतना तो आपसे रिक्वेस्ट कर रहे हैं हम।
टी. टी.ई:- सुनिए! अब हम जो बोले हैं उसमें 200 माइनस कीजिए और बात खतम कीजिए। आप भी परिवार वाले आदमी हैं। आपके लिए इतना तो कर ही सकते हैं।
डील डन हो जाती है।
थोड़ी देर बाद मैं नीचे उतर आता हूँ। डील डन होने के बाद उन दोनों में बातचीत शुरु हो जाती है।
टी.टी.ई महोदय बोल रहे हैं कि अरे जानते हैं !...जब तक अपने बिहार में कास्ट सिस्टम के आधार पर वोट देना लोग बंद नहीं करेगा, सिस्टम नहीं सुधरेगा। भ्रष्टाचार होखबे करेगा। अच्छा लोग राजनीति में आयेगा तभी जाकर बदलाव सम्भव है।
अपने बिहार ही नहीं पूरे देश के पीछे होने का सबसे बड़ा कारण है- 'भ्रष्टाचार '।
यात्री:- सही बोल रहे हैं सर। इसी से हमोलग पिछड़ गये हैं।
गाँधी की सत्याग्रह भूमि पर पैर रखते ही सप्तक्रांति एक्सप्रेस में अहले सुबह परम् ज्ञान का यह प्रवचन सुनकर धन्य हो जाता हूँ।
छोटी बच्ची पर मेरी नज़र पड़ती है। वह मुझे एक निर्दोष मुस्कान से तरल कर देती है। मैं हाथ हिलाकर उसे बाय कह देता हूँ। मैं गाँधी की धरती पर पधारते ही परम ज्ञान को पाकर गदगद हो, स्टेशन पर उतरने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ जाता हूँ।
प्रशान्त रमण रवि
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